कक्षा 10 विज्ञान: अध्याय 5 – जैव प्रक्रम – महत्वपूर्ण नोट्स एवं प्रश्न-उत्तर
जैव प्रक्रम परिचय—
- 1.जैव प्रक्रम —
➠सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं।



बहुचयनात्मक प्रश्न
- 1.जीवित रहने के लिये आवश्यक है—
उत्तर : (द)
- 2.श्वसन के परिणामस्वरूप ऊर्जा का निर्माण होता है।
उत्तर : (अ)
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.जैव प्रक्रम को परिभाषित कीजिए। (2023)
उत्तर : वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं, जैव प्रक्रम कहलाते हैं।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है?
- 2.कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदंड का उपयोग करेंगे?
- 3.किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता है?
- 4.जीवन के अनुरक्षण के लिए आप किन प्रक्रमों को आवश्यक मानेंगे?
लघुत्तरात्मक प्रश्न के हल
- 1.विसरण क्रिया द्वारा बहुकोशिकीय जीवो में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन शरीर के प्रत्येक अंग में नहीं पहुंचायी जा सकती है।
- ➠बहुकोशिकीय जीवो में ऑक्सीजन बहुत आवश्यक होती है।
- ➠बहुकोशिकीय जीवो की संरचना अति जटिल होती है।
- ➠प्रत्येक अंग को ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। जो विसरण क्रिया नहीं पूरी कर सकती है।
- 2.सजीव वस्तुएँ निरंतर गति करती रहती है। चाहे वे सुप्त अवस्था में ही हो। बाह्य रूप से वे अचेत दिखाई देते है। उनके अणु गतिशील रहते है। इससे उनके जीवित होने का प्रमाण मिलता है।
- 3.जीवो को शारीरिक वृद्धि के लिए बाहर से अतिरिक्त कच्ची सामग्री की आवश्यकता होती है।
- ➠पृथ्वी पर जीवन कार्बन अणुओं पर आधारित है। अतः यह खाद्य पदार्थ कार्बन पर निर्भर है।
- ➠कार्बनिक यौगिक भोजन का ही अन्य रूप है। इनमें ऑक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान प्रमुख है।
- ➠जल व खनिज लवण अन्य है।
- ➠हरे पौधे में कच्चे पदार्थ से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में स्टार्च का निर्माण होता है।
- 4.अनेक जैविक क्रियाएँ जीवन के अनुरक्षण के लिए आवश्यक है । जैसे –
- ➠पोषण
- ➠गति
- ➠श्वसन
- ➠वृद्धि
- ➠उत्सर्जन
- ➠वहन
पोषण—
- ☛ भोजन को अन्तर्गहण करने की “प्रक्रिया।”
- ☛ सजीवों द्वारा भोजन को ग्रहण करना।
- या
- ☛ भोजन का अवशोषण करना व शरीर के अंगो के मरम्मत व अनुरक्षण का कार्य करना, पोषण कहलाता है।

| स्वपोषी पोषण | विषमपोषी पोषण |
|---|---|
| भोजन के सरल अकार्बनिक कच्चे माल जैसे, जल CO2 में संश्लेषित किया जाता है। | भोजन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त किया जाता है। भोजन को एन्जाइम की मदद से तोड़ा जाता है। |
| प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। | प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं होती है। |
| क्लोरोफिल की आवश्यकता होती है। | क्लोरोफिल की आवश्यकता नहीं होती है। |
| भोजन का निर्माण दिन के समय। | भोजन का निर्माण किसी भी समय। |
| हरे पौधे तथा जीवाणुओं में। | सभी जीवों तथा कवकों में। |
स्वपोषी पोषण—
- प्रकाश संश्लेषण—
- ☛ पेड़-पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में वयुमण्डल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ (CO2 व जल) क्लोरोफिल की उपस्थिति मे अपना भोजन बनाते है तथा कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित हो जाते है, जिसमें ऊर्जा संचित होती है।
- ☛ कार्बोहाइड्रेट, मण्ड के रूप में संचयित तथा बाद में आवश्यकता अनुसार प्रयुक्त।

- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया—
- ☛ प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करना तथा जल अणुओं का ऑक्सीजन व हाईड्रोजन में अपघटन।
- ☛ CO2 का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।
नोट:
- ☛ मरूद्रभिद् पौधे रात्रि में CO2 लेते है एवं मध्यस्थ उत्पाद बनाते है तथा दिन में क्लोरोफिल ऊर्जा अवशोषित करके अंतिम उत्पाद बनाते है।
- ☛ मरूद्रभिद् पौधे रात्रि में CO2 लेते है एवं मध्यस्थ उत्पाद बनाते है तथा दिन में क्लोरोफिल ऊर्जा अवशोषित करके अंतिम उत्पाद बनाते है।
- पत्ती का अनुप्रस्थ काट का चित्र—

- ☛ कुछ कोशिकाओं में हरे रंग के बिन्दू दिखाई देते है। ये बिन्दु कोशिकांग है जिन्हे क्लोराप्लास्ट कहते है। इनमें क्लोरोफिल होता है।
- रन्ध्र—
- ☛ पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे छिद्र पाये जाते है, जिन्हे रन्ध्र कहा जाता है।

- ☛ (a) खुला रंध्र; (b) बंद रंध्र
- कार्य—
- ☛ प्रकाश संश्लेषण के दौरान गैसों का आदान-प्रदान।
- ☛ वाष्पोत्सर्जन के दौरान जल का बूंदों के रूप में उत्सर्जन करना।
- ☛ रन्ध्रों के खुलने व बंद होने का कार्य द्वार कोशिकाओं द्वारा सम्पन्न।
- ☛ द्वार कोशिकाओं के सिकुड़ने पर छिद्र बंद व फूलने पर छिद्र खुलते है।
बहुचयनात्मक प्रश्न / रिक्त स्थान
- 1.स्वपोषी पोषण के लिए आवश्यक है—
उत्तर : (द)
- 2.पर्ण में छिद्रों के खुलने व बंद होने का कार्य किसके द्वारा होता है? (2024)
उत्तर : (स)
- 3.रंध्रों के खुलने तथा बंद होने का कार्य …………………. के द्वारा होता है।
उत्तर : द्वार कोशिकाओं
- 4.पौधों में क्लोरोप्लास्ट प्रकाशग्राही अणु है।
उत्तर : (ब)
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.स्वपोषी पोषण के लिये आवश्यक परिस्थितियाँ कौनसी हैं और उसके उपोत्पाद क्या हैं? (2023)
- उत्तर:स्वपोषी पोषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, जल, सूर्य का प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति आवश्यक है। इसके उपोत्पाद कार्बोहाइड्रेट तथा ऑक्सीजन है।

लघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.(i) पत्तियों में रंध्रों के खुलने व बंद होने की प्रक्रिया समझाइए।
(ii) खुले व बंद रंध्र का नामांकित चित्र बनाइए। (2024) - 2.प्रकाश संश्लेषण प्रक्रम के दौरान होने वाली तीनों घटनाओं को समझाइए। (2022)
- 3.प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री पौधा कहाँ से प्राप्त करता है?
लघुत्तरात्मक प्रश्न के हल
- 1.(i) पत्तियों में रंध्रों के खुलने व बंद होने की प्रक्रिया—
जो पत्ती की सतह पर सूक्ष्म छिद्र होते हैं। प्रकाश संश्लेषण के लिए गैसों का अधिकांश आदान-प्रदान इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है, लेकिन गैसों का आदान-प्रदान तने, जड़ और पत्तियों की सतह से भी होता है। इन रंध्रों से पर्याप्त मात्रा में जल की भी हानि होती है।
अतः जब प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की आवश्यकता नहीं होती तब पौधा इन छिद्रों को बंद कर लेता है। छिद्रों का खुलना और बंद होना द्वार कोशिकाओं का एक कार्य है। द्वार कोशिकाओं में जब जल अंदर जाता है तो वे फूल जाती हैं और रंध्र का छिद्र खुल जाता है। इसी तरह जब द्वार कोशिकाएँ सिकुड़ती हैं तो छिद्र बंद हो जाता है।
- .(ii) खुले व बंद रंध्र का नामांकित चित्र —

(a) खुला रंध्र; (b) बंद रंध्र
- 2.प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम के दौरान निम्नलिखित घटनाएँ होती हैं —
- ➠क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना।
- ➠प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन।
- ➠कार्बन डाइऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।
- 3.जल — पौधों की जड़ों द्वारा भूमि से प्राप्त
कार्बन डाइऑक्साइड — वायुमंडल से रंध्रो द्वारा प्राप्त
क्लोरोफिल — हरे पत्तो में क्लोरोप्लास्ट होता है,
जिसमे क्लोरोफिल मौजूद सूर्य का प्रकाश — सूर्य द्वारा प्राप्त।
- 3.जल — पौधों की जड़ों द्वारा भूमि से प्राप्त
स्वपोषी पोषण—
- ☛ भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर।
- ☛ कार्बनिक पदार्थों के सेवन और पाचन से ऊर्जा प्राप्त।
- ☛ कार्बनिक पदार्थों के सेवन और पाचन से ऊर्जा प्राप्त।


- अमीबा में पोषण—
- ☛ अमीबा एक कोशिकीय प्राणी समपोषी जीव।
- ☛ प्रोटोजोआ संघ का सदस्य।
- ☛ अनिश्चित आकार।
- ☛ नदियों, तालाब, झीलो में उपस्थित।
- ☛ नदियों, तालाब, झीलो में उपस्थित।
|

- पैरामीशियम में पोषण—
- ☛ एककोशिकीय जीव
- ☛ निश्चित आकार
- ☛ पैरामीशियम → पक्ष्याभ – कोशिका की पूरी सतह को ढके रहते है।
- ☛ भोजन विशिष्ट स्थान से ग्रहण।

बहुचयनात्मक प्रश्न / रिक्त स्थान
- 1.अमरबेल उदाहरण है—
उत्तर : (स)
- 2.पैरामीशियम की पूरी सतह पर ………….. उपस्थित होते हैं।
उत्तर : सिलिया
- 3.मनुष्य एक पूर्णभोजी प्राणी है।
उत्तर : (अ)
लघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में क्या अंतर है?
- उत्तर:स्वयंपोषी पोषण तथा विषमपोषी पोषण में अंतर —
| स्वपोषी पोषण | विषमपोषी पोषण |
|---|---|
| भोजन के सरल अकार्बनिक कच्चे माल जैसे, जल CO2 में संश्लेषित किया जाता है। | भोजन को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त किया जाता है। भोजन को एन्जाइम की मदद से तोड़ा जाता है। |
| प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है। | प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं होती है। |
| क्लोरोफिल की आवश्यकता होती है। | क्लोरोफिल की आवश्यकता नहीं होती है। |
| भोजन का निर्माण दिन के समय। | भोजन का निर्माण किसी भी समय। |
| हरे पौधे तथा जीवाणुओं में। | सभी जीवों तथा कवकों में। |
मनुष्य में पोषण—

- पाचन तंत्र—
- ☛ भोजन के जटिल तथा बड़े पोषक पदार्थो व विभिन्न रासायनिक क्रियाओं व एन्जाइम की सहायता से सरल, छोटे व घुलनशील अणुओं में परिवर्तन, पाचन कहलाता है।
- ☛ जो तंत्र यह कार्य करता है, पाचन तंत्र कहलाता है।
- ☛ जो तंत्र यह कार्य करता है, पाचन तंत्र कहलाता है।
| ☛ | भोजन के जटिल कार्बनिक पदार्थ |
| सरल कार्बनिक पदार्थ |



- लार ग्रंथि—
- ☛ मनुष्य में तीन जोडी लार ग्रन्थि
- ☛ लार की प्रकृति हल्की अम्लीय
- ☛ तीन जोडे → a. कर्णपूर्व ग्रन्थि, b. अधोजभ, c. अधोजिह्वा
- ☛ लार में लार एमाइलेज या टायलिन एन्जाइम पाया जाता है। जो कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च) का 30 प्रतिशत पांचन करता है।

- ग्रसिका नली (ग्रासनली)—
- ☛ वक्षगुहा से होती हुई तनुपट में से उदरगुहा के आमाशय में खुलती है।
- ☛ संकरी पेशीय नली — 25 से.मी. लम्बाई
- ☛ श्लेष्मा ग्रन्थि — भोजन को लसलसा बनाती है।
- ☛ भोजन को क्रंमाकुंचन गति।
- ☛ ग्रासनली के शीर्ष पर ऊत्तकों का एक पल्ला होता है। जिसे घाटी ढक्कन / एपिग्लोटिस कहते है।

- Special Points—
- ☛ आमाशय में पाचन जठर ग्रन्थियों द्वारा सम्पन्न।
- ☛ आमाशय में भोजन 3-4 घण्टे तक रूकता है। इसमें जठर रस में (HCl) पेप्सिन, रेनिन, श्लेष्मा होती है।
- ☛ पेप्सीन → प्रोटीन का पाचन
- ☛ रेनिन → दूध का पाचन
- ☛ श्लेष्मा → आमाशय की दीवार पर रक्षात्मक आवरण बनाती है।
- छोटी आँत (क्षुद्रांत्र)—
- ☛ आहारनाल का सबसे लम्बा भाग।
- ☛ घास खाने वाले शाकाहारी जीवों में लम्बी क्षुद्रांत्र की आवश्यकता।
- ☛ मांसाहारी जीवों की क्षुद्रांत्र छोटी।
- ☛ कार्बोहाइड्रेट, वसा व प्रोटीन का पूर्ण पाचन।
- ☛ यकृत व अग्नाशय से स्त्रवण प्राप्त।


- अग्नाश्य (6–8 इंच लंबी) (U आकार की)—
- ☛ अग्नाशयी रस की स्त्रवण।
- ☛ प्रोटीन का पाचन – ट्रिप्सिन एन्जाइम द्वारा।
- ☛ इमल्सीकृत वसा का पाचन – लाइपेज।
1. प्रोटीन का पाचन —
| ■ | प्रोटीन | पेप्सिन ──────► | पेप्टाइड |
| ■ | प्रोटीन | काइमोट्रिप्सिन ──────► | पेप्टाइड |
2. कार्बोहाइड्रेट का पाचन —
| ■ | स्टार्च | एमाइलेज ──────► | माल्टोज |
3. वसा का पाचन —
| ■ | वसा के जटिल कण | लाइपेज ──────► | सरल कण |
4. आंत्र रस —
➤ ब्रूनर की भित्ति में उपस्थित ग्रंथि द्वारा आंत्र रस स्रावित होता है
| ■ | प्रोटीन | ट्रिप्सिन ──────► | अमीनो अम्ल |
| ■ | माल्टोज | माल्टेज ──────► | ग्लूकोज |
| ■ | लैक्टोज | लैक्टेज ──────► | ग्लूकोज |
| ■ | सुक्रोज | सुक्रेज ──────► | ग्लूकोज |
| ■ | वसा | लाइपेज ──────► | वसीय अम्ल |


- यकृत—
- ☛ सबसे बड़ी ग्रन्थि।
- ☛ पित्त का निर्माण।
- ☛ पिताशय में संग्रहित।
- ☛ आमाशय से आने वाले भोजन को क्षारीय बनाना।
- ☛ वसा की बड़ी गोलिकाओं को छोटी गोलिकाओं में खंडित।
- ☛ पचित भोजन आंत्र भित्ति द्वारा अवशोषित।
- ☛ आंतरिक स्तर पर उपस्थित दीर्घरोम द्वारा अवशोषण।
- ☛ आंतरिक स्तर पर उपस्थित दीर्घरोम द्वारा अवशोषण।
| ☛ | अम्लीय भोजन |
| क्षारीय भोजन |

- बड़ी आंत—
- ☛ अपचित भोजन को शरीर से बाहर।
- ☛ दीर्घरोम द्वारा जल का अवशोषण।
दंतक्षरण
- ☛ दंतक्षरण या दंतक्षय इनैमल तथा डैंटीन के शनैः शनैः मृदुकरण के कारण होता है।
- ☛ इसका प्रारंभ होता है, जब जीवाणु शर्करा पर क्रिया करके अम्ल बनाते हैं। तब इनैमल मृदु या बिखनिजीकृत हो जाता है।
- ☛ अनेक जीवाणु कोशिका खाद्यकणों के साथ मिलकर दाँतों पर चिपक कर दंतप्लाक बना देते हैं, प्लाक दाँत को ढक लेता है। इसलिए, लार अम्ल को उदासीन करने के लिए दंत सतह तक नहीं पहुँच पाती है।
- ☛ इससे पहले कि जीवाणु अम्ल पैदा करे भोजनोपरांत दाँतों में ब्रश करने से प्लाक हट सकता है।
- ☛ यदि अनुपचारित रहता है तो सूक्ष्मजीव मज्जा में प्रवेश कर सकते हैं तथा जलन व संक्रमण कर सकते हैं।
बहुचयनात्मक प्रश्न / रिक्त स्थान
- 1.पेप्सिन एन्जाइम द्वारा पाचन होता है—
उत्तर : (ब)
- 2.लार ग्रंथियों की संख्या है—
उत्तर : (स)
- 3.शाकाहारी जन्तुओं को छोटी क्षुदांत्र की आवश्यकता होती है।
उत्तर : (ब)
- 4.क्षुद्रांत्र में उपस्थित दीर्घरोम का कार्य ……………. है।
उत्तर : अवशोषण
- 5.लार में भी एक एंजाइम होता है जिसे लारीय ………… कहते हैं। (2023)
उत्तर : एमाइलेज़
- 6.भोजन का सम्पूर्ण पाचन …………….. में होता है।
उत्तर : छोटी आंत
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.हमारे आमाशय में अम्ल की भूमिका क्या है?
- 2.पाचन एंजाइमों का क्या कार्य है?
- 2.पाचन एंजाइमों का क्या कार्य है?
- 3.पचे हुए भोजन को अवशोषित करने के लिए क्षुद्रांत्र को कैसे अभिकल्पित किया गया है?
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न के हल
- 1.हमारे आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल उपस्थित।
- ➠अम्लीय माध्यम का निर्माण ।
- ➠इसी की मदद से एंजाइम अपना कार्य करता है।
- ➠हाइड्रोक्लोरिक अम्ल हमारे भोजन में उपस्थित रोगाणुओं को नष्ट कर देता है।
- ➠आमाशय में भोजन पचाने में सहायक।
- 2.पाचन एंजाइम जटिल भोजन को सरल, सूक्ष्म तथा लाभदायक पदार्थ में बदल देता है।
- ➠इस प्रकार से सरल पदार्थ छोटी आंत द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं।
- 3.पचा हुआ भोजन, क्षुद्रांत्र में अवशोषित।
- ➠क्षुद्रांत्र में हजारो सूक्ष्म, अंगुलीनुमा विलाई होते है इसी कारण इनका आन्तरिक क्षेत्रफल बढ़ जाता है।
- ➠क्षेत्रफल के बढ़ने से अवशोषण भी बढ़ जाता है। यह अवशोषित भोजन रूधिर में पहुंचता है।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.(i) पाचन को परिभाषित कीजिये।
(ii) भोजन के पाचन में अग्न्याशयिक रस की भूमिका को समझाइऐ।
(iii) मानव के पाचन तंत्र (आहारनाल) की संरचना का नामांकित चित्र बनाइऐ।
- 2.हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?
- 3.भोजन के पाचन में लार की क्या भूमिका है?
- 1.(i) पाचन को परिभाषित कीजिये।
लघुत्तरात्मक प्रश्न के हल
- 1.
- (i)पाचन — वह क्रिया है जिसमें भोजन को यांत्रिकीय और रासायनिक रूप से छोटे छोटे घटकों में विभाजित कर दिया जाता है ताकि उन्हें रक्तधारा में अवशोषित किया जा सके. पाचन एक प्रकार की अपचय क्रिया है ; जिसमें आहार के बड़े अणुओं को छोटे-छोटे अणुओं में बदल दिया जाता है।
- (ii)भोजन के पाचन में अग्न्याशयिक रस की भूमिका— पाचन के दौरान, आपका अग्न्याशय एंजाइम नामक अग्नाशयी रस बनाता है। ये एंजाइम शर्करा, वसा और स्टार्च को तोड़ते हैं। प्रोटीन के पाचन के लिए ट्रिप्सिन एंजाइम होता है तथा इमल्सीकृत वसा का पाचन करने के लिए लाइपेज एंजाइम होता है।
- (iii)मानव के पाचन तंत्र—

- 2.हमारे भोजन में वसा का पाचन मुख्य रूप से क्षुद्रान्त्र में होता है। इस कार्य के लिए क्षुद्रान्त्र, यकृत एवं अग्नाशय से स्त्रवण प्राप्त करती है।
- ➠पित्त लवण द्वारा भोजन में उपस्थित वसा की बड़ी गोलिकाओं को छोटी गोलिकाओं में खंडित कर दिया जाता है।
- ➠अग्नाश्य से आने वाला अग्नाशयी रस इन छोटी गोलिकाओं वाली वसा को लाइपेज एंजाइम के माध्यम से पचा देता है।
- ➠एंजाइम अंत में वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देते हैं।
- 3.भोजन के पाचन में लार की अहम भूमिका है। आहारनाल का आस्तर बहुत कोमल होता है। लार सम्पूर्ण भोजन में फैलकर उसे चबाने एवं गीला करने में मदद करता है ताकि इसका मार्ग आसान हो जाए। लार में उपस्थित एंजाइम जिसे एमाइलेज कहते हैं, स्टार्च के जटिल अणुओं को शर्करा में विखंडित कर देता है।
श्वसन—
- ☛ कोशिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में खाद्य पदार्थ का ऑक्सीकरण जिसमें ऊर्जा उत्पन्न होती है, श्वसन कहलाता है।
- ☛ ऊर्जा के लिए कोशिकाएँ पोषण तत्वों का O2 द्वारा ऑक्सीकरण करती हैं।

- ☛ ATP का निर्माण व CO2 उत्पन्न।
- श्वसन क्रिया—
- ☛ जटिल जैव प्रक्रिया।
- ☛ पचित भोजन का ऑक्सीकरण।
- ☛ ग्लुकोज + O2 = ऊर्जा।
- ☛ माइटोकोन्ड्रिया में सम्पन्न → ऊर्जा का निर्माण।
- श्वास लेना व श्वास छोडना—
- ☛ O2 का ग्रहण व CO2 को छोडना।
- ☛ फेफडों में सम्पन्न।
- ☛ ऊर्जा का निर्माण नहीं होता।
- ☛ रक्त में O2 का मिलना तथा CO2 का निकलना।
- श्वसन के प्रकार—
- ☛ वायवीय श्वसन → ऑक्सीजन प्रयुक्त।
- ☛ अवायवीय श्वसन → ऑक्सीजन प्रयुक्त नहीं होती भिन्न पथों पर ग्लूकोज का विखण्डन।
मनुष्य में श्वसन
|

ए.टी.पी.
- ☛ अधिकांश कोशिकीय प्रक्रमों के लिए ऊर्जा मुद्रा।
- ☛ श्वसन में मोचित ऊर्जा का उपयोग ए.डी.पी. (A.D.P) तथा अकार्बनिक फास्फेट से ए.टी.पी. अणु बनाने में।

- ☛ जल के उपयोग के बाद ए.टी.पी. में अंतस्थ फास्फेट सहलग्नता खण्डित → 30.5 KJ/Mol के तुल्य ऊर्जा मोचित।
- ☛ ए.टी.पी. का उपयोग पेशियों के सिकुड़ने, प्रोटीन संश्लेषण, तंत्रिका आवेग का संचरण आदि के लिए।
| स्थलीय जीव | जलीय जीव |
|---|---|
| वायुमण्डल में उपस्थित O2 को ग्रहण | जल में घुली O2 का उपयोग |
| मनुष्य | जलीय जीव |
| श्वसन दर कम | श्वसन दर अधिक |
| O2 पर्याप्त मात्रा में | जल में O2 कम |
| फेफडों द्वारा | क्लोम द्वारा |
बहुचयनात्मक प्रश्न / रिक्त स्थान
- 1.अवायवीय श्वसन में मुख्य उत्पाद है—
उत्तर : (स)
- 2.पायरुवेट के विखंडन से यह कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा ऊर्जा देता है और यह क्रिया होती है —
उत्तर : (ब)
- 3.जलीय जीवों में श्वास दर कम होती है।
उत्तर : (ब)
- 4.श्वसन प्रक्रिया ……………….. में सम्पन्न होती है।
उत्तर : माइट्रोकांड्रिया
- 5.क्रैम्प का मुख्य कारण, पेशियों में …………… का निर्माण है।
उत्तर :लैक्टिक अम्ल
लघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है?
- 2.ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
- 2.ग्लूकोज़ के ऑक्सीकरण से भिन्न जीवों में ऊर्जा प्राप्त करने के विभिन्न पथ क्या हैं?
- 3.वायवीय तथा अवायवीय श्वसन में क्या अंतर हैं? कुछ जीवों के नाम लिखिए जिनमें अवायवीय श्वसन होता है।
- 4.वायवीय श्वसन को परिभाषित कीजिए। (2023)
लघुत्तरात्मक प्रश्न के हल
- 1.वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा पर्याप्त; स्थलीय जीवों द्वारा आसानी से ग्रहण; जल में ऑक्सीजन की मात्रा सूक्ष्म
जलीय जीवों श्वास दर अधिक ।
- 2.

- 3.
वायवीय श्वसन अवायवीय श्वसन यह ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। यह ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। गैसों का आदान-प्रदान वातावरण से होता है। गैसों का आदान-प्रदान नहीं होता है। श्वसन के उपरान्त कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल बनते हैं। श्वसन के उपरान्त कार्बन डाइऑक्साइड तथा इथेनॉल बनते हैं। अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। अपेक्षाकृत कम मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
- 4.वायवीय श्वसन : जब ग्लूकोस का विखंडन ऑक्सीजन के उपयोग द्वारा होता है, तो यह वायवीय श्वसन कहलाता है।
मानव श्वसन तंत्र—

- ☛ नासाद्वार द्वारा वायु का शरीर में प्रवेश जहाँ महीन बाल व श्लेष्मा द्वारा वायु का निस्पंदन सम्पन्न।
- ☛ कंठ द्वारा वायु का फुक्फुस में प्रवेश।
- ☛ कंठ में वायु मार्ग निपतित न होने के लिए उपास्थि वलय उपस्थित।
- ☛ फुक्फुस के अंदर मार्ग छोटी नलिकाओं में विभाजित होकर अंत में कूपिका में अंतकृत।
- ☛ कूपिका, गैसों के विनिमय के लिए सतह उपलब्ध कराती है।
- ☛ श्वास अंदर लेने पर डायाफ्राम चपटा और वायु का फुक्फुस के अंदर प्रवेश।
- ☛ ऑक्सीजन शरीर में संचरित।
- ☛ शेष रूधिर कार्बन डाई ऑक्साइड कूपिका में छोड़ने के लिए लाता है।
- ☛ मानवों में श्वसन वर्णक हिमोग्लोबिन उपस्थित।
- श्वसन के प्रकार—
- 1. बाह्य श्वसन : गैसों का आदान-प्रदान वायु से भरी व केशिकाओं के रक्त के बीच र्गसों के आंशीक दबाव के कारण होता है।
- 2. अन्तः श्वसन : गैसों का विनिमय केशिकाओं में प्रवाहित रक्त तथा ऊत्तकों के मध्य विसरण द्वारा होता है।
बहुचयनात्मक प्रश्न / रिक्त स्थान
- 1.गैसों के विनिमय के लिए सतह उपलब्ध कौन कराता है?
उत्तर : (द)
- 2.मनुष्य में श्वसन वर्णक …………… है।
उत्तर : हिमोग्लोबिन
- 3.श्वासनली ………………. द्वारा समर्थित होती है।
उत्तर :उपास्थि छल्लों
लघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन कैसे होता है?
- 2.गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुक्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?
- 2.गैसों के विनिमय के लिए मानव-फुक्फुस में अधिकतम क्षेत्रफल को कैसे अभिकल्पित किया है?
- 3.फुफ्फुस में कूपिकाओं की तथा वृक्क में वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि की तुलना कीजिए।
- 4.हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं?
- 5.गैसों के अधिकतम विनिमय के लिए कूपिकाएँ किस प्रकार अभिकल्पित होती हैं?
- 6.गैसों के विनिमय के लिए मानव फुफ्फुस की कार्यप्रणाली को समझाइए। (2022)
- 7.(i) मानव श्वसन तंत्र के वायु-मार्ग को समझाइए।
(ii) मानव श्वसन तंत्र का नामांकित चित्र बनाइए। (2023)
लघुत्तरात्मक प्रश्न के हल
- 1.मनुष्यों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के परिवहन को श्वसन कहते हैं।
- ➠प्रक्रिया फेफड़ों द्वारा संपन्न ।
- ➠फेफड़ों में साँस के द्वारा पहुँची हुई वायु में से हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कण) ऑक्सीजन को ग्रहण कर के शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुंचता है।
- ➠ऑक्सीजन का शरीर के प्रत्येक अंग तक गमन।
- ➠CO2, रक्त के संपर्क में आने पर उसके प्लाज्मा में घुल जाती है।
- ➠यह CO2, प्लाज्मा के द्वारा पूरे शरीर से पुनः रक्त से वायु में स्थानांतरित ।
- 2. मानव फुफ्फुस के कार्य
- ➠मानव फुक्फुस छोटी-छोटी नलियों में बँटा होता है।
- ➠श्वसनी, श्वसनिकाओं के बाद अंत में कुपिकाओं में खुलती है।
- ➠जिनकी संरचना गुब्बारे के समान।
- ➠कुपिकाओं द्वारा गैसों का परिवहन तथा एक विशाल क्षेत्र उपलब्ध कराती हैं।
- 3.
कूपिका वृक्काणु (नेफ्रॉन) फुफ्फुस में कूपिकाएँ छोटे-छोटे गुब्बारे जैसी संरचनाएँ होती है। वृक्क में नलिका वृक्काणु (नेफ्रॉन) नलिका के आकार के निस्पंद एकक होते हैं। कूपिकाओं की दीवारे एक कोशिका जितनी ही मोटी होती हैं और इसमें रक्त केशिकाओं का एक गुच्छ होता है। फुफ्फुस की तरह वृक्काणु में भी पतली भित्ती वाली रूधिर केशिकाओं का गुच्छ होता है। कूपिकाएँ एक सतह उपलब्ध कराती हैं जिससे गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन) का विनिमय होता है। नाइट्रोजनी वर्ज्य पदार्थ जैसे यूरिया या यूरिक अम्ल आदि को छानकर अलग किया जाता है। ग्लूकोस, एमिनो अम्ल, लवण और जल का पुनरवशोषण होता है। अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। अपेक्षाकृत कम मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।
- 4.हीमोग्लोबिन का मुख्य कार्य हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं तक ऑक्सीजन पहुँचाना होता है। हीमोग्लोबिन की कमी के कारण शरीर के सभी भागों तक ऑक्सीजन नहीं पहुँच पाती है।
जिसके कारण शरीर के विभिन्न अंगों को कार्य करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिल पाती और हमें कमजोरी तथा थकान का अनुभव होता है।
- 5.फेफड़ों के अंदर गुब्बारे जैसी संरचना कूपिका कहलाती है। इसका भीतरी भाग छोटी-छोटी नलिकाओं में विभाजित होता है और ये नलिकाएँ एक विस्तृत सतह का निर्माण करती है जिससे गैसों का अधिकतम विनिमय हो सके।
कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तृत जाल होता है।
जब हम साँस लेते है तो वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है और वायु विस्तृत कूपिकाओं में भर जाती है।
वायु भरने से कूपिकाएँ फूलकर बड़े क्षेत्रफल में फैल जाती हैं और गैसों के विनिमय के लिए अधिकतम क्षेत्रफल प्रदान करती है।
- 6.मनुष्य में वायु शरीर के अंदर नासाद्वार द्वारा जाती है। नासाद्वार द्वारा जाने वाली वायु मार्ग में उपस्थित महीन बालों द्वारा निस्पंदित हो जाती है, जिससे शरीर में जाने वाली वायु धूल तथा दूसरी अशुद्धियाँ रहित होती है। इस मार्ग में श्लेष्मा की परत होती है, जो इस प्रक्रम में सहायक होती है।
यहाँ से वायु कंठ द्वारा फुफ्फुस में प्रवाहित होती है। कंठ में उपास्थि के वलय उपस्थित होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि वायु मार्ग निपतित न हो।
फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाता है, जो अंत में गुब्बारे जैसी रचना में अंतकृत हो जाता है, जिसे कूपिका कहते हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है, जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है। कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है। जब हम श्वास अंदर लेते हैं, हमारी पसलियाँ ऊपर उठती हैं और हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है, इसके परिणामस्वरूप वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है।
इस कारण वायु फुफ्फुस के अंदर चूस ली जाती है और विस्तृत कूपिकाओं को भर लेती है। रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है।
श्वास चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती है, फुफ्फुस सदैव वायु का अवशिष्ट आयतन रखते हैं, जिससे ऑक्सीजन के अवशोषण तथा कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
फुफ्फुस की वायु से श्वसन वर्णक ऑक्सीजन लेकर, उन ऊतकों तक पहुँचाते हैं, जिनमें ऑक्सीजन की कमी है। मानव में श्वसन वर्णक हीमोग्लोबिन है, जो ऑक्सीजन के लिए उच्च बंधुता रखता है। यह वर्णक लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित होता है। कार्बन डाइऑक्साइड जल में अधिक विलेय है और इसलिए इसका परिवहन हमारे रुधिर में विलेय अवस्था में होता है।
- 7. (i) मानव श्वसन तंत्र के वायु-मार्ग :
- ➠मनुष्य में वायु शरीर के अंदर नासाद्वार द्वारा जाती है। नासाद्वार द्वारा जाने वाली वायु मार्ग में उपस्थित महीन बालों द्वारा निस्पंदित हो जाती है, जिससे शरीर में जाने वाली वायु धूल तथा दूसरी अशुद्धियाँ रहित होती है। इस मार्ग में श्लेष्मा की परत होती है, जो इस प्रक्रम में सहायक होती है। यहाँ से वायु कंठ द्वारा फुफ्फुस में प्रवाहित होती है। कंठ में उपास्थि के वलय उपस्थित होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि वायु मार्ग निपतित न हो।
- ➠फुफ्फुस के अंदर मार्ग छोटी और छोटी नलिकाओं में विभाजित हो जाता है, जो अंत में गुब्बारे जैसी रचना में अंतकृत हो जाता है, जिसे कूपिका कहते हैं। कूपिका एक सतह उपलब्ध कराती है, जिससे गैसों का विनिमय हो सकता है। कूपिकाओं की भित्ति में रुधिर वाहिकाओं का विस्तीर्ण जाल होता है। जब हम श्वास अंदर लेते हैं, हमारी पसलियाँ ऊपर उठती हैं और हमारा डायाफ्राम चपटा हो जाता है, इसके परिणामस्वरूप वक्षगुहिका बड़ी हो जाती है।
- ➠इस कारण वायु फुफ्फुस के अंदर चूस ली जाती है और विस्तृत कूपिकाओं को भर लेती है। रुधिर शेष शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड कूपिकाओं में छोड़ने के लिए लाता है। कूपिका रुधिर वाहिका का रुधिर कूपिका वायु से ऑक्सीजन लेकर शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचाता है।
- ➠श्वास चक्र के समय जब वायु अंदर और बाहर होती है, फुफ्फुस सदैव वायु का अवशिष्ट आयतन रखते हैं, जिससे ऑक्सीजन के अवशोषण तथा कार्बन डाइऑक्साइड के मोचन के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
- ➠फुफ्फुस की वायु से श्वसन वर्णक ऑक्सीजन लेकर, उन ऊतकों तक पहुँचाते हैं, जिनमें ऑक्सीजन की कमी है। मानव में श्वसन वर्णक हीमोग्लोबिन है, जो ऑक्सीजन के लिए उच्च बंधुता रखता है। यह वर्णक लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित होता है। कार्बन डाइऑक्साइड जल में अधिक विलेय है और इसलिए इसका परिवहन हमारे रुधिर में विलेय अवस्था में होता है।
- (ii) मानव श्वसन तंत्र:

वहन—
- रक्त—
- ☛ दुर्बल क्षारीय प्रकृति।
- ☛ तरल संयोजी ऊतक।
- ☛ Ph → 7.4
- ☛ रक्त का निर्माण लाल अस्थि मज्जा में।
- ☛ भ्रूण अवस्था व नवजात में रक्त का निर्माण — प्लीहा में
- ☛ भोजन, ऑक्सीजन व वर्ज्य पदार्थों का शरीर में वहन।

- रक्त का कार्य—
- ☛ O2 व CO2 का वातावरण व ऊतकों के मध्य विनिमय।
- ☛ पोषक तत्वों का परिवहन।
- ☛ शरीर का pH नियंत्रित।
- ☛ ताप नियंत्रण।
- ☛ प्रतिरक्षण के कार्यो का संपादन।
- ☛ हार्मोनों का आवश्यकतानुसार परिवहन।
- ☛ उत्सर्जी उत्पादों को शरीर से बाहर।
- हृदय—
- ☛ पेशीय अंग।
- ☛ मुट्ठी के आकार का।
- ☛ दोनों फेफडों के मध्य स्थित।
- ☛ कुछ भाग बायीं तरफ।
- ☛ पम्पिंग स्टेशन।



- विशेष—
- ☛ आलिन्द की अपेक्षा निलय की पेशीय भित्ति मोटी।
- ☛ आलिन्द व निलय के संकुचन पर वाल्व उल्टी दिशा में रूधिर प्रवाह को रोकते है।

- रक्तचाप—
- ☛ सामान्य व्यक्ति का रक्तचाप → 120/80 mmHg
- ☛ मापक यंत्र → स्फाईग्नोमैनोमीटर (रक्तचाप मापी यंत्र)
- ☛ सरीसृपों में तीन कोष्ठीय ह्रदय उपस्थित।
- ☛ मछली ह्रदय में दो कोष्ठ उपस्थित।
- लसीका—
- ☛ द्रव तरल कोशिकाओं से मिलकर बना ऊत्तक । → 120/80 mmHg
- ☛ रूधिर में प्लाज्मा की तरह उपस्थित → स्फाईग्नोमैनोमीटर (रक्तचाप मापी यंत्र)
- ☛ कुछ अन्य प्रोटीन जो लसीका वहन में सहायता करते है, भी उपस्थित होते है।
- लसीका के कार्य—
- ☛ प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने तथा वहन मे सहायक। → 120/80 mmHg
- ☛ पचा हुआ व छोटी आंत द्वारा अवशोषित वसा का परिवहन।
- ☛ अतिरिक्त तरल को रक्त तक ले जाने का कार्य।
- ☛ लसीका में पाऐ जाने वाले लिम्फोसाइड संक्रमण के विरूद्ध लडने का कार्य ।
पादपों में परिवहन —
| स्थलीय जीव | जलीय जीव |
|---|---|
| पादप तंत्र का एक अवयव जो जल का वहन, एकदिशिय | पत्तियों द्वारा प्रकाश संश्लेषित उत्पादों को पादपों के अन्य भागों तक पहुँचाना। द्विदिशिय |
| निर्जीव ऊतक | सजीव ऊत्तक |
| संवहन नलिकाऐं मुख्य | चालनी नलिकाऐं मुख्य |
| भित्ति मोटी | भित्ति मोटी नहीं होती। |
- भोजन व दूसरे पदार्थों का स्थानान्तरण—
- ☛ प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है, जो कि फलोएम द्वारा होता है। → 120/80 mmHg
- ☛ स्थानान्तरण, पत्तियों से पौधे के शेष भागों में उपरिमुखी व अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है।
- ☛ स्थानान्तरण, पत्तियों से पौधे के शेष भागों में उपरिमुखी व अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है।
बहुचयनात्मक प्रश्न / रिक्त स्थान
- 1.ऑक्सीजन का वहन होता है—
उत्तर : (द)
- 2.ऑक्सीजन का वहन होता है—
उत्तर : (द)
- 3.सामान्य प्रकुंचन दाब होता है—
उत्तर : (ब)
- 4.मछली के ह्रदय में कितने कोष्ठ होते हैं?
उत्तर : (ब)
- 5.मानव में हृदय एक तंत्र का भाग है, जो संबंधित है– (2023, 2024)
उत्तर : (द)
- 6.कौनसे यंत्र द्वारा रक्तदाब नापा जाता है? (2022)
उत्तर : (अ)
- 7.पादप में जाइलम उत्तरदायी है —
उत्तर : (अ)
- 8.वाल्व उल्टी दिशा में रूधिर प्रवाह को रोकना सुनिश्चित करते हैं।
उत्तर : (अ)
- 9.पादपों में जल का परिवहन फ्लोएम द्वारा होता है।
उत्तर : (ब)
- 10.……………… रूधिर फुक्फुस से ह्रदय के बायें आलिन्द में आता है।
उत्तर : ऑक्सीजनित
- 11.रक्तदाब का मापन ………………. द्वारा किया जाता है।
उत्तर : स्फ़ाईग्मोमैनोमीटर
लघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.मनुष्य में दोहरा परिसंचरण की व्याख्या कीजिए। यह क्यों आवश्यक है?
- 2.जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अंतर है?
- 2.जाइलम तथा फ्लोएम में पदार्थों के वहन में क्या अंतर है?
- 3.मानव में दोहरा परिसंचरण क्यों आवश्यक हैं? (2023)
- 4.स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रूधिर को अलग करना क्यों आवश्यक है?
- 5.उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के घटक क्या हैं?
- 6.पादप में जल और खनिज लवण का वहन कैसे होता है?
- 7.पादप में भोजन का स्थानांतरण कैसे होता हैं?
- 8.मानव में वहन तंत्र के घटक कौन से हैं? इन घटकों के क्या कार्य हैं?
लघुत्तरात्मक प्रश्न के हल
- 1.मनुष्य तथा अन्य कशेरुकी जीवों में रक्त ह्रदय में दो बार प्रवाहित होता है इसलिए इस प्रक्रिया को दोहरा परिसंचरण कहते हैं। ह्रदय चार कोष्ठीय होता हैं। ऊपर दो कोष्ठों को अलिंद तथा नीचे के दो कोष्ठों को निलय कहते हैं।
ऑक्सीजन प्रचुर रुधिर फुफ्फुस से ह्रदय में बाई ओर स्थित कोष्ठ (बायाँ अलिंद) में आता है।
- 1.मनुष्य तथा अन्य कशेरुकी जीवों में रक्त ह्रदय में दो बार प्रवाहित होता है इसलिए इस प्रक्रिया को दोहरा परिसंचरण कहते हैं। ह्रदय चार कोष्ठीय होता हैं। ऊपर दो कोष्ठों को अलिंद तथा नीचे के दो कोष्ठों को निलय कहते हैं।
इस रुधिर को एकत्रित करते समय बायां अलिंद शिथिल रहता है।जब अगला कोष्ठ (बायाँ निलय) फैलता है तब यह संकुचित होता है जिससे रुधिर इसमें स्थानांतरित होता है।
जब पेशीय बायाँ निलय संकुचित होता है, तब रुधिर शरीर में पंपित हो जाता है।
इसी प्रकार जब दायाँ अलिंद फैलता है तो शरीर से विआक्सिजनित रुधिर इसमें आ जाता है। जैसे ही दायाँ अलिंद संकुचित होता है दायाँ निलय फैल जाता है। यह रुधिर को दाएँ निलय में स्थानांतरित कर देता है। इस प्रकार रुधिर का परिसंचरण होता है।
- 2.
जाइलम फ्लोएम जाइलम पौधों में जल तथा खनिज लवण का वहन करता है। फ्लोएम पौधों में तैयार भोजन को विभिन्न भागों तक पहुँचाता है। जल का वहन जड़ से ऊपर की ओर होता है। पत्तियों में तैयार भोजन का वहन सभी दिशाओं में होता है। जाइलम द्वारा जल का वहन साधारण भौतिक बलों जैसे वाष्पोत्सर्जन आदि द्वारा होता है। फ्लोएम द्वारा भोजन के वहन में ऊर्जा (ATP के रूप में) की आवश्यकता होती है।
- 2.
- 3.पूरे शरीर में (फेफड़ों को छोड़कर) ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुँचाने के लिए, और बाद में फेफड़ों में ऑक्सीजन रहित रक्त को प्राप्त करने के लिए, दोहरे परिसंचरण की आवश्यकता होती है।
- 4.स्तनधारी तथा पक्षियों को अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो ग्लूकोज़ के खंडित होने पर प्राप्त होती है l
ग्लूकोज़ के खंडन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रक्त को अलग करके ही शरीर को इतनी ज्यादा मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध करा सकती है।
- 5.उच्च संगठित पादप में वहन तंत्र के प्रमुख घटक है:
1. जाइलम ऊतक
2. फ्लोएम ऊतक
- 6.पादप में जल और खनिज लवण का वहन जाइलम ऊतक करता है।
जड़ो की कोशिकाएँ मृदा के अंदर होती है तथा वह आयन का आदान प्रदान करती है। यह जड़ और मृदा में जड़ के आयन में एक अंतर उत्पन्न करता है। इस अंतर को समाप्त करने के लिए जल गति करते हुए जड़ के जाइलम में जाता है और जल के स्तर का निर्माण करता है, जो लगातार ऊपर की ओर धकेला जाता है।
यह दाब जल को ऊपर की तरफ पहुंचा नहीं सकता है। पत्तियो के द्वारा वाष्पोत्सर्जन क्रिया से जल की हानि होती है, जो जल को जड़ो में उपस्थित कोशिकाओ द्वारा खींचता है।
- 7.पत्तियाँ भोजन तैयार करती हैं। पत्तियों से भोजन स्थानांतरण पूरे पौधे में फ्लोएम वाहिकाए करती हैं।
- 8.मानव में वहन तंत्र के प्रमुख घटक है: हृदय, रूधिर तथा रूधिर वाहिकाएँ।
हृदय : हृदय एक पम्प की तरह रक्त का शरीर के विभिन्न अंगों से आदान-प्रदान करता है।
रुधिर : प्लाज़्मा तरल माध्यम है। रक्त शरीर में CO2, भोजन, जल, ऑक्सीजन तथा अन्य पदार्थों का वहन करता है।
RBC : CO2 तथा ऑक्सीजन गैसों तथा अन्य पदार्थों का वहन करती हैं।
WBC : शरीर में बाहर से आए जीवाणुओं से लड़कर शरीर को रोग मुक्त करती हैं।
प्लेटलेट्स : चोट लगने पर रक्त को बहने से रोकती हैं।
रक्त वाहिकाएँ : रुधिर को शरीर के सभी अंगों तक तथा सभी अंगों से हृदय तक पहुँचाने का कार्य करती हैं।
उत्सर्जन—
- ☛ शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने की व्यवस्था।
- 1. अमोनिया : अमोनिया उत्सर्जन, अमोनियोत्सर्ग, प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न।
उदाहरण: मछलि द्वारा। - 2. यूरिया: यूरिया उत्सर्जी प्राणियों द्वारा।
उदाहरण: स्तनधारी द्वारा। - 3. यूरिक अम्ल अमोनिया को यूरिक अम्ल में परिवर्तित कर उत्सर्जन।
उदाहरण: पक्षियों, सरीसृप, कीटों द्वारा।

मानव उत्सर्जन तंत्र—
- ☛ एक जोड़ी वृक्क, एक मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय व एक मूत्रमार्ग।
- ☛ एक जोड़ी वृक्क, एक मूत्रवाहिनी, एक मूत्राशय व एक मूत्रमार्ग।

- वृक्क—
- ☛ मुख्य उत्सर्जन अंग।
- ☛ 75-80% तरल अपशिष्टों को बाहर करता है।
- ☛ शरीर में स्त्रावित रसों का नियंत्रण।
- ☛ सेम के दाने की आकृति तथा गहरे भूरे रंग के।
- ☛ इसकी मध्य सतह पर खांच होती है, जिसे हाइलम कहते है।
- ☛ हाइलम के भीतरी भाग में कीप के आकार की वृक्कीय श्रेणी।
- ☛ वृक्क के भाग बाहरी = वल्कुट
→ भीतरी = मध्यांश - ☛ वृक्क कई लाख उत्सर्जन इकाईयों से मिलकर बना होता है, जिन्हें वृक्काणु नेफ्रॉन कहते है।
- वृक्काणु की संरचना—

- ☛ बोमेन सम्पुट: यह नेफ्रॉन के ऊपरी भाग में पाए जाने वाले कप के आकार का थैला होता है।
- ☛ इसमें शाखा अभिवाही धमनियों की केशिकाओं का एक गुच्छ पाया जाता है, जिसे ग्लोमेरुलस कहते है।
- ☛ ग्लोमेरूलस का एक सिरा, जो बोमेन सम्पुट में अपशिष्ट युक्त गंदा रक्त लाता है तथा दूसरा हिस्सा स्वच्छ रक्त को ले जाने हेतु वृक्क शिरा से जुड़ा रहता है।
- ☛ वृक्क नलिका: प्रत्येक वृक्क नलिका में समीपस्थ नलिका, हेनले लूप, दूरस्थ नलिका जैसे भाग होते है जो संग्रह नलिका में खुलते है।
- ☛ मूत्रवाहिनी: एक जोड़ी के रूप में पाई जाती है, जो मूत्र को वृक्क से मूत्राशय तक पहुँचाने का कार्य करती है।
- ☛ मूत्राशय: वृक्क से मूत्र, मूत्रवाहिनी के द्वारा मूत्राशय में आता है। यह एक थैलीनुमा संरचना होती है।
- ☛ मूत्र मार्ग: इसके द्वारा मूत्र शरीर के बाहर।
- मूत्र निर्माण की प्रक्रिया—
- 1. गुच्दीय निस्यंदन:
- ☛ रक्त का निस्पंदन पूर्ण
- ☛ प्रति मिनट 1000-1200 मी.ली. रक्त का निस्पंदन
- ☛ ग्लूकोज, लवण, एमीनो अम्ल, यूरिया आदि निस्पंदित होकर बोमेन सम्पुट में एकत्रित।
- ☛ तत्पश्चात् वृक्क नलिका से गुजरता है।
- 2. पुनः अवशोषण —
- ☛ वृक्क नलिका की दीवारें घनी, उपकला कोशिकाओं से बनी होती है।
- ☛ ये ग्लूकोज, अमीनो अम्ल व अन्य उपयोगी पदार्थो का पुनः अवशोषण करती है।
- 3. स्त्रावण—
- ☛ मूत्र, वृक्क की संग्रहण नलिका में ले जाया जाता है।
- ☛ मूत्र का मूत्रनली में प्रवेश
- ☛ मूत्रनली का मूत्राशय में खुलना
- ☛ मूत्रमार्ग द्वारा उत्सर्जन
- कृत्रिम वृक्क (अपोहन)—
- ☛ कुछ कारक जैसे संक्रमण, आघात या वृक्क में सीमित रुधिर प्रवाह, वृक्क की क्रियाशीलता को कम कर देते हैं। जिससे शरीर में विषैले अपशिष्ट का संचय होने लगता है, जिससे मृत्यु भी हो सकती है।
- ☛ वृक्क के अपक्रिय होने की अवस्था में कृत्रिम वृक्क का उपयोग किया जा सकता है। एक कृत्रिम वृक्क नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पादों को रुधिर से अपोहन (dialysis) द्वारा निकालने की एक युक्ति है।
- ☛ कृत्रिम वृक्क बहुत सी अर्धपारगम्य आस्तर वाली नलिकाओं से युक्त होती है। ये नलिकाएँ अपोहन द्रव से भरी टंकी में लगी होती हैं। इस द्रव का परासरण दाब रुधिर जैसा ही होता है लेकिन इसमें नाइट्रोजनी अपशिष्ट नहीं होते हैं।
- ☛ रोगी के रुधिर को इन नलिकाओं से प्रवाहित कराते हैं। इस मार्ग में रुधिर से अपशिष्ट उत्पाद विसरण द्वारा अपोहन द्रव में आ जाते हैं। शुद्धिकृत रुधिर वापस रोगी के शरीर में पंपित कर दिया जाता है।

- पादपों में उत्सर्जन—
- ☛ वाष्पोत्सर्जन द्वारा, अतिरिक्त जल बाहर त्यागना।
- ☛ बहुत से पादपों में अपशिष्ट पदार्थ कोशिकीय रिक्तिका में संचित।
- ☛ अन्य अपशिष्ट उत्पाद रेजिन व गोंद के रूप में पुराने जाइलम में संचित।
- ☛ कुछ पादपों द्वारा मृदा में उत्सर्जन।
- ☛ गिरने वाली पत्तियों में भी अपशिष्ट उत्पाद संचित।
अंगदान
अंगदान एक उदार कार्य है, जिसमें किसी ऐसे व्यक्ति को अंगदान किया जाता है, जिसका कोई अंग ठीक से कार्य न कर रहा हो। यह दान दाताओं और उनके परिवार वालों की सहमति द्वारा किया जा सकता है। अंग और ऊतक दान में दान दाता की उम्र व लिंग मायने नहीं रखता। प्रत्यारोपण किसी व्यक्ति के जीवन को बचा या बदल सकता है। ग्राही के अंग खराब अथवा बीमारी या चोट की वजह से क्षतिग्रस्त होने के कारण अंग प्रत्यारोपण आवश्यक हो जाता है। अंगदान में किसी एक व्यक्ति (दाता) के शरीर से शल्य चिकित्सा द्वारा अंग निकालकर किसी अन्य व्यक्ति (ग्राही) के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। सामान्य प्रत्यारोपण में कॉर्निया, गुर्दे, दिल, यकृत, अग्नाशय, फेफड़े, आंत और अस्थिमज्जा शामिल हैं। अधिकांशतः अंगदान व ऊतक दान दाता की मृत्यु के ठीक बाद होते हैं या जब डॉक्टर किसी व्यक्ति के मस्तिष्क को मृत घोषित करता है तबा लेकिन कुछ अंगों, जैसे- गुर्दे, यकृत का कुछ भाग, फेफड़े इत्यादि और ऊतकों का दान दाता के जीवित होने पर भी किया जा सकता है।
बहुचयनात्मक प्रश्न / रिक्त स्थान
- 1.मनुष्य में वृक्क एक तंत्र का भाग है, जो संबंधित है—
उत्तर : (द)
- 2.वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई है—
उत्तर : (ब)
- 3.निम्न में से किस अंग को दान किया जा सकता है?
उत्तर : (द)
- 4.अपोहन में कौनसा चरण शामिल नहीं होता?
उत्तर : (ब)
- 5.बोमेन सम्पुट उत्सर्जन तंत्र का भाग है।
उत्तर : (अ)
- 6.मानव शरीर में यूरिया उत्सर्जी पदार्थ है।
उत्तर : (अ)
- 7.वाष्पोत्सर्जन पादपों में उत्सर्जन की एक प्रक्रिया है।
उत्तर : (अ)
- 8. एक कृत्रिम वृक्क नाइट्रोजनी अपशिष्ट उत्पादों को रुधिर से …………… द्वारा निकालने की एक युक्ति है। (2024)
उत्तर : अपोहन
अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.रेज़िन तथा गोंद पादप के कौन से भाग में संचित होते हैं? (2024)
उत्तर : पुराने जाइलम में
लघुत्तरात्मक प्रश्न
- 1.वृक्काणु (नेफ्रॉन) की रचना तथा क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
- 2.मूत्र बनने की मात्रा का नियमन किस प्रकार होता है?
- 3.उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने लिए पादप किन विधियों का उपयोग करते हैं।
लघुत्तरात्मक प्रश्न के हल
- 1.

- मूत्र निर्माण के चरण — 1. निस्यंदन 2. पुनःअवशोषण 3. स्त्रवण
- 2.मनुष्य द्वारा पिया जाने वाले पानी व शरीर द्वारा अवशोषण पर मूत्र की मात्रा निर्भर करती है। कम पानी पीने पर मूत्र की मात्रा कम होती है कुछ हार्मोन इसे अपने नियंत्रण में रखते है। यूरिया तथा यूरिक अम्ल के उत्सर्जन के लिए भी जल की मात्रा बढ़ जाती है। अतः अधिक मूत्र उत्सर्जित होता है।
- 3. उत्सर्जी उत्पाद से छुटकारा पाने के लिए निम्न विधियाँ है —
- ➠प्रकाश – संश्लेषण में पौधे ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड श्वसन के लिए रंध्रों द्वारा उपयोग में लाते हैं।
- ➠पौधे अधिक मात्रा में उपस्थित जल को वाष्पोत्सर्जन क्रिया द्वारा कम कर सकते हैं।
- ➠पौधे कुछ अपशिष्ट पदार्थ को अपने आस पास के मृदा में उत्सर्जित कर देते हैं।
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Mission Gyan2025-12-04T19:43:52+05:30December 4, 2025|0 Comments
🎯Rajasthan RSSB Patwari Result 2025 Declared – Download Merit List PDF & Check Next Process The Rajasthan Staff Selection Board (RSSB) has officially declared the Rajasthan Patwari Result 2025 for candidates who appeared in the [...]
SBI SO Recruitment 2025 🔔: 996 Vacancies Apply Online
Mission Gyan2025-12-03T22:02:35+05:30December 3, 2025|0 Comments
🏦 SBI SO Recruitment 2025 ✅ – Apply Online for 996 Posts Notification State Bank of India (SBI) has officially released the SBI SO Recruitment 2025 Notification for 996 Specialist Officer vacancies including VP Wealth [...]
SSC GD Constable 2026 Notification, Vacancy & Apply Online Guide
Mission Gyan2025-12-02T23:33:31+05:30December 2, 2025|0 Comments
SSC GD Constable 2026 Notification🎓 The SSC GD Constable 2026 recruitment is a national-level examination conducted to recruit candidates for various Central Armed Police Forces and other government organizations. Candidates who have passed Class 10 [...]
CTET 2026 Notification Apply Online, Eligibility & Fees
Mission Gyan2025-11-28T19:12:31+05:30November 28, 2025|0 Comments
CTET 2026 Notification 📢 Apply Online for February Exam The Central Board of Secondary Education (CBSE) has officially released the CTET 2026 Notification for the February session. If you dream of becoming a government teacher [...]
NIOS April 2026 Registration Begins: Apply Online Now
Mission Gyan2025-11-26T23:38:43+05:30November 26, 2025|0 Comments
NIOS April 2026 Registration Open 🎉 | Class 10 & 12 Students Apply Now The National Institute of Open Schooling (NIOS) has officially opened the registration and fee payment window for the April 2026 exams [...]
CSIR NET 2025 Notification: December Exam Date, Eligibility, Fee & How to Apply
Mission Gyan2025-11-25T18:36:14+05:30November 25, 2025|0 Comments
CSIR NET 2025 Notification Out 🚀 The National Testing Agency (NTA) has released the CSIR UGC NET December 2025 Notification, confirming the exam date as 18 December 2025.This national-level exam determines eligibility for JRF, Assistant [...]
UPSC EPFO Admit Card 2025: Download Hall Ticket Now
Mission Gyan2025-11-24T23:23:04+05:30November 24, 2025|0 Comments
UPSC EPFO Admit Card 2025: Download Your Hall Ticket Soon 🎫 The Union Public Service Commission (UPSC) will release the UPSC EPFO Admit Card 2025 soon on its official website: www.upsc.gov.in. The UPSC EPFO APFC [...]













